Thursday, September 8, 2011

मजदूर

देश क भावी कर्णधार हैं एक रिक्शे पर सवार
चालक पे पांव घूम रहे हैं लगातार
उसके ही काँधे पर है इन मासूमों क सफ़र का भार
चाहे कदम चले या नहीं उसे पहुँचाना है इन्हें शिक्षा क द्वार
एक,दो या तीन नहीं,लदे अहिं इस रिक्शा पर काफी ज्यादा सवार
जरा गौर से देखें तो बोझजदा हैं ये बच्चे भी
भरी सा बस्ता और दिमाग को भी होना पड़ता है कई विषयों से दोचार
पर इक बात कर रही मेरे मस्तिस्क में युद्ध का सा माहोल तेयार
ये बच्चे जब तक न पहुंचे सही-सलामत घर के द्वार
रहता है मन बैचेन और आते हैं भयानक विचार बार बार
जोखिम उठाते हैं हम सोंप क अपने हृदय के टुकड़े रिक्शाचालक को
वही है जो लगाता है इस नैया को भंवर क पार.........पूनम माटिया